Sunday 10 February 2013

राही की तलाश में ;


राही की तलाश में ;
...................................
गर जाना ही है तुझको तो फिर आती क्यूँ  है
रहने दे प्यासा मुझको गले लगाती क्यूँ  है ;

रहती तू अपने आँगन याद मुझको आती क्यूँ  है
ले ले तू जान मेरी  इतना तडपाती क्यूँ  है ;

है रंज तुझे  हम रोज़ नजर नहीं आते
और  आते हैं तो नजर बचाती क्यूँ है ;

ख्वाइशें तेरी यूँ तो सब मुकम्मल होती हैं
तू सजदे में सर फिर झुकाती क्यूँ है;

मैं जब भी खोना चाहूँ खुद की तलाश में ;
तू  मुझको अपना पता बताती क्यूं  है ;.....

कुमार  विकास
                                         
(ये मेरी मौलिक रचना है )…।