राही की तलाश में ;
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गर जाना ही है तुझको तो फिर आती क्यूँ है
रहने दे प्यासा मुझको गले लगाती क्यूँ है ;
रहती तू अपने आँगन याद मुझको आती क्यूँ है
ले ले तू जान मेरी इतना तडपाती क्यूँ है ;
है रंज तुझे हम रोज़ नजर नहीं आते
और आते हैं तो नजर बचाती क्यूँ है ;
ख्वाइशें तेरी यूँ तो सब मुकम्मल होती हैं
तू सजदे में सर फिर झुकाती क्यूँ है;
मैं जब भी खोना चाहूँ खुद की तलाश में ;
तू मुझको अपना पता बताती क्यूं है ;.....
कुमार विकास
(ये मेरी मौलिक रचना है )…।