Thursday 31 December 2015

नया साल दिन वही पुराना

गुजरते हुए हर एक साल की तरह ही ये एक साल भी गुजर ही गया बहोत सारी खट्टी मि्ठी यादों के साथ और इस साल के गुजरने में या इन यादों में इतनी एकरसता सी आ गएी है कि नीरसता सी होने लगती है और साथ में वही पुरानी घिसी पिटी शुभकामनाओं के साथ तो मन और ऊचाट हो जाता है व्याट्सअप पर तो आपको कई संदेश दूसरों के नाम से मिल जाएँगें जैसे डाकिया गलती से मिश्रा जी की चिठ्ठी तिवारी जी के घर दे आया हो रोग फिल्म को वो संवाद याद आ रहा है जब इरफान खान डा० को अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या सुनाते हैं
(घर थाना थाना घर वही खून .... मन ऊब सा गया है)

Thursday 8 October 2015

मेरी आवाज सुनो

ये तस्वीर लखनऊ के विकास नगर सडक की है जिसमें बोलने में भी लगभग असमर्थ एक सख्श ने अपने बाक्स पर लिख रखा है मेरी आवाज सुनो मैंने जब ये दृश्य देखा और जो भी मुझे सुनाएी दिया पाटी पर लिख रहा हूँ
 आप शायद देख पा रहे होंगे कि ट्रायसायकिल के एक तरफ वजन करने वाली मशीन रखी है बगल में एक बाक्स रखा है जिसमें ऊपर रूपये डालने की जगह बनी हुएी है और हैण्डल पर एक टार्च बँधी है जो सीधे मशीन की सुईयों पर फोकस है ताकि वजन आसानी से पढा जा सके इसी बाक्स पर लिखा है ऊपर ही गुब्बारे बँधे हैं बगल के बोर्ड पर रेटलिस्ट है वजन करने का २ रू तथा गुब्बारे का ५ रू इस तरह एक विशेष रूप से सक्षम (विकलांग के लिए हिन्दी में एक नया शब्द है विक्षेष रूप से सक्षम NDTV ने ये एक नया और सम्मानजनक नाम गढा है)
व्यक्ति अपनी जीविका उपार्जन कर रहा है और हैरान करने की बात ये है कि कुछ मानसिक रूप से भी लाचारी है जब मैंने बात करी तब ये बात समझ आएी बस एक वाक्य बार बार बोला गया मेरे हर सवाल पर I can't speak Hindi.मैंने जब अंग्रजी में कुछ पूछा तो भी सवाल का जवाब वही रहा मैंने ये तस्वीर उनसे पूछ के ही ली पर वो मुझे कह नहीं पाए कि तस्वीर लूँ या नहीं तो बस ये कह कर कि एक तस्वीर निकाल रहा हूँ आपकी, ये तस्वीर ले ली
इस एक दृश्य ने मुझे सफलता के गढे हुए तमाम तथाकथित मानकों पर फिर से सोचने को मजबूर कर दिया, हो सकता हो ये सख्श सफलता के उन मापदणडों को पूरा नहीं करता हो जो हमने बना रखे हैं मगर मेरी नजर में इस सख्श की जीवटता उन तमाम मापदण्डों से ऊँची है जिस पर मैं और हम सब कभी न कभी अपने आपको तौलने लग जाते हैं कभी पद के नाम पर कभी पैसे के नाम पर और फिर कभी इन सब के आगे पहचान पाने की लालशा से, अपने २ तरीके से आंकलन करते हैं कि हमारे पास क्या है इस सवाल में सन्दर्भ( हमारे पास क्या नहीं है )का ही है
मैं हमेशा सोचता रहा हूँ कि भविष्य निर्माण के क्रम में क्या जरूरी है व्यक्तित्व का विकास या आर्थिक विकास बेशक दोनों जरूरी हैं लेकिन आनुपातिक रूप में चरित्र निर्माण ही प्रथम होना चाहिए आपका चरित्र आपका भविष्य निर्मित कर देगा मुझे नहीं पता चरित्र निर्माण की पाठशाला कहाँ से शुरू होती है लेकिन इतना जरूर पता है ये कहीं न कहीं हमारे अन्दर ही है तस्वीर में मौजूद इस व्यक्ति ने अपने जीवन का केन्द्र बिन्दु उसकी अपनी अक्षमताओं को नहीं बनाया बल्कि उन मौंकों में खुद को तलाशा जो उसके पास मौजूद थे मैं हमेशा मानता रहा हूँ कि अगर सफल होना ही सफलता का मानक है तो एसे मानकों को बदल देना चाहिए किसी की सफलता की कहानी जरूर पढिए लेकिन किसी की असफलता को भी पढिए कुछ अपने उन दोस्तों को भी गले लगाइए जो क्लास के हीरो नहीं हैं बस जीवन में कुछ करते रहिए अपने आज को जीते रहिए क्यूँकि ये ही मौजूद है सच है कि हमारे आने वाले कल की बुनियाद हमारे आज पर है लेकिन देखना कि हम अपने आज और आने वाले कल के बीच अपने गुजरे हुए कल की महत्ता को न भुला दें हमारा गुजरा हुआ कल हमारे अतीत का वो आइना है जो हमें दिखाता है कि हम कल क्या थे और आज क्या हो गए हैं 

Sunday 13 September 2015

एक गजल सुनाता हूँ

एक शहर की वो जिन्दा कहानी आज भी है
मोहब्बत में धडकते दिलों में रवानी आज भी है

दिन के उजाले झूठी मुस्कानों को ढो रहे हैं
रात जानती है उनकी आँखों में पानी आज भी है

वादों ख्याबों खयालों की चिता तो कब की जल चुकी
कुछ लफ्जों में बची उसकी निशानी अाज भी है

उनसे मिलने का तसव्वुर फिर जाग बैठा जबकि मालूम है
दिल तोड जाने की उनकी आदत पुरानी आज भी है

Saturday 5 September 2015

मांझी द माउन्टेन मैन

आप  कल्पना कीजिए कि जिस देश में आज भी अपेक्षाकृत छोटी जाति के लोगों को बारात के समय घोडी पे न बैठने दिया जाता हो तो किस हौसले के दम पर दशरथ मांझी ने एक पहाड को अपने दम पर काट कर रास्ता बना दिया
बताता चलूँ कि दशरथ मांझी भारत के उस प्रदेश से आते हैं जो आज भी पिछडा है और उस जाति की नुमाइन्दगी करते हैं जो कथित रूप से सबसे छोटी और निम्न तबके की है मुसहर जाति -मूस माने चूहा खाने वाले ये हमको तब पता जब अभिनेता आमिर खान ने सत्वमेव जयते के दौरान मुसहर जाति से पूरे हिन्दुस्तान को रूबरू करवाया और वादा किया कि वो दशरथ मांझी की पुत्रवधु के इलाज का खर्चा देगें आमिर खान व पप्पू यादव (लोकसभा सांसद ) उनके गाँव गहलोर गए भी पर अफसोस वो सत्वमेव जयते के हर कार्यक्रम में रोते रहे और ऊधर दशरथ मांझी की पुत्रवधु इलाज के अभाव में परलोक सिधार गएी और आगे फिर तो जीतन राम माँझी तक ने किस तरह अपने आप को मुसहर जाति का बता २ के चूहा खाने तक की बात को सार्वजनिक मन्चों पर उछाला और अपने पिछडेपन का रोना रोते रहे या यूँ कहें कि घडियाली आंसू बहाते रहे और मुख्यमन्त्री बने खैर ये नेता अभिनेता वक्ता अधिवक्ता इन्हें छोड के चलते हैं अपने नायक के पास

असली नायक की परिभाषा तो आज तक विशुध़्द रूप से गढी नहीं जा सकी लेकिन अगर कभी लिखी जाएगी तो भागीरथ के बाद फिर से एक भागीरथ होगा दशरथ मांझी जिसने कम से कम फिल्म के माध्यम से नवाज के सहारे हमें बताया एक प्रेमी के रूप में प्रेम को जीना, पिता के रूप में प्रेम को स्वीकाराना, और अभिभाभवक के रूप में प्रेम की ताकत को पहचानना

केतन मेहता ने मांझी को दिखाने के साथ २ फिल्म के व्यापार स्वरूप को बनाए रखा और वो जरूरी भी तो है हम भारतीयों की सिनेमा देखने की आदत भी तो नहीं है लेकिन नवाजुद्दीन ने जिस अन्दाज में पहाड को ललकारा

(बहोत बडा है तू बहोत अकड है तोरा में बहोत जोर है अरे भरम है भरम देख कैसे उखाडते हैं तेरी अकड )

यकीनन फिल्म के सर्वश्रेष्ठ दृश्यों में एक है कैमरा भी उसी अन्दाज में पहाड को और खून में सने नवाज को आमने सामने ले आया लेकिन जब सवाल उठा कि क्यूँ एक आदमी एक पूरे पहाड से अकेले लड रहा है तब प्रेम अपने प्रान्जल रूप में भगुनिया (राधिका आप्टे) मांझी की प्रेयसी और फिर पत्नी के रूप अपनी सम्पूर्णता के साथ प्रकट हुआ

इसी सफर में आज भी सुनने को मिलने वाली घटनाएँ कि कैसे कोई खनन मफिया अधिकारी को ट्रेक्टर से कुचल देता है फिल्म में देखने को मिली जब भट्टे में ईटों को तपाते वक्त एक मजदूर के गिर जाने पर भट्टा इसलिए नहीं बुझाया जाता कि एक मजदूर की जान की कीमत से कहीं ज्यादा मँहगी हैं मुखिया की ईंटो की कीमत समाज के बर्बर और असभ्य चेहरे को तार तार करती ये फिल्म और भी कई मोडों से गुजरती हुएी हमसे सवाल करती और हमको शर्मशार करते हुए आगे बढती रहती है
और एक सवाल पर ठहर जाती है कि दशरथ मांधी कहाँ से लाते हो वो प्रेरणा वो बल और संबल जो तुम्हें ताकत देता है लडने की ,इस पहाड की मगरूरता को चूर चूर करने की, जिसने तुम्हारी भगुनिआ की जान ले ली और जो जवाब आता है उसके आगे प्रेम की बेमिशाल इमारत भी भीकी लगने लगती है
(प्रीत में बहोत बल है रे बाबू .......पहले अपनी भगुनिआ से था अब इस पहाड से है)
वाकई इस लाइन को नवाज ने जिस खूबसूरती के साथ कहा है वो बताता है कि क्यूँ वो अभिनेता के रूप में कमाल के कलाकार हैं राधिका आप्टे ने भी अपने अभिनय के साथ नवाज का पूरा पूरा साथ दिया है और दशरथ के पिता के रूप में अशरफ उल हक ने बहोत ही बढिया और प्रभावी अभिनय किया
आखिर प्रीत की जीत तो हो जाती है पर साथ ही मांझी बताना नहीं भूलते कि किसी भी चीज के लिए भगवान के सहारे मत बैठो क्या पता भगवान तुम्हारे सहारे बैठा हो.....
और यूँ बनती है एक फिल्म जो है
        शानदार ,जबरदस्त, जिन्दाबाद

नोट- सन् २००६ में बिहार सरकार ने मांझी के नाम का सुझाव पद्म श्री के लिए दिया पर शायद मिला नहीं बताता चलूँ कि 2007 में दशरथ मांझी की मृत्यु हो गएी बिना उस रास्ते पर सडक को देखे जिसके लिए उन्होंने पहाड काट के रास्ता बना दिया हमारी सरकारों के लिए क्या कहा जाए बस आप सबके लिए एक आँकडा दे रहा हूँ
देश की सबसे लम्बी सुरंग जम्मू से कश्मीर के बीच बनायी जा रही है जिससे ३० कि०मी० की दूरी घटकर १० कि०मी० रह जाएगी ये सडक जुलाई २०१६,तक बन जाएगी इस परियोजना पर खर्च २५०० करोड का है और दूसरी तरफ 22 साल तक पहाड तोड के रास्ता बनाने वाले मांझी के गांव गहलोर तथा बजीरगंज के बीच ३ कि०मी० जिससे ५५ कि०मी० का रास्ता घटकर १५ कि०मी० रह गया ये सडक २०११ में बन सकी उसको मांझी सडक के नाम से पहचान मिली शायद इससे ही श्रद्धाजंलि मिल जाए दशरथ मांझी को

साभार सारी सूचनाएँ विकीपीडिया और गूगल से ली गएी हैं

Wednesday 2 September 2015

नया सफर

आत्मिक खुशी या वास्तविक खुशी हमेशा ही आपके अन्दर ही होती है इस बात का जिक्र किताबों में अक्सर ही हमने पढा है लेकिन आज इस बात को महसूस भी कर पा रहा हूँ लगभग तीन साल पहले ये ब्लाग बनाया था लेकिन पूरी तरह से लिखने की प्रबल इच्छा मन में लिए भी नहीं लिख पा रहा था तमाम कारण खुद ही बना के खुद को बहला लेता था मसलन हिन्दी टाइपिंग सीख लूँगा तब लिखुँगा ,नए साल से लिखुँगा ,नौकरी लग जाए तब लिखुँगा और कितनी विचित्र सी बात है कि ऊपर लिखे कारणों में से आज कोई भी नहीं है बस तकनीक का थोडा सहारा लिया और बस अपने एक सपने को जीने लगा और अब ये सतत चलता रहेगा
आपने भी अगर कुछ करने का ख्याल पाला हुआ है तो मैं बस इतना ही कहूँगा कि जितनी जल्दी हो सके उस ख्याल को जमीन पे ले आइए वो चाहे कुछ भी हो वगरना क्या पता मेरे किसी दोस्त की कही वो लाइन सच हो जाए
ख्याल का क्या है आया फिर चला गया