Saturday 5 September 2015

मांझी द माउन्टेन मैन

आप  कल्पना कीजिए कि जिस देश में आज भी अपेक्षाकृत छोटी जाति के लोगों को बारात के समय घोडी पे न बैठने दिया जाता हो तो किस हौसले के दम पर दशरथ मांझी ने एक पहाड को अपने दम पर काट कर रास्ता बना दिया
बताता चलूँ कि दशरथ मांझी भारत के उस प्रदेश से आते हैं जो आज भी पिछडा है और उस जाति की नुमाइन्दगी करते हैं जो कथित रूप से सबसे छोटी और निम्न तबके की है मुसहर जाति -मूस माने चूहा खाने वाले ये हमको तब पता जब अभिनेता आमिर खान ने सत्वमेव जयते के दौरान मुसहर जाति से पूरे हिन्दुस्तान को रूबरू करवाया और वादा किया कि वो दशरथ मांझी की पुत्रवधु के इलाज का खर्चा देगें आमिर खान व पप्पू यादव (लोकसभा सांसद ) उनके गाँव गहलोर गए भी पर अफसोस वो सत्वमेव जयते के हर कार्यक्रम में रोते रहे और ऊधर दशरथ मांझी की पुत्रवधु इलाज के अभाव में परलोक सिधार गएी और आगे फिर तो जीतन राम माँझी तक ने किस तरह अपने आप को मुसहर जाति का बता २ के चूहा खाने तक की बात को सार्वजनिक मन्चों पर उछाला और अपने पिछडेपन का रोना रोते रहे या यूँ कहें कि घडियाली आंसू बहाते रहे और मुख्यमन्त्री बने खैर ये नेता अभिनेता वक्ता अधिवक्ता इन्हें छोड के चलते हैं अपने नायक के पास

असली नायक की परिभाषा तो आज तक विशुध़्द रूप से गढी नहीं जा सकी लेकिन अगर कभी लिखी जाएगी तो भागीरथ के बाद फिर से एक भागीरथ होगा दशरथ मांझी जिसने कम से कम फिल्म के माध्यम से नवाज के सहारे हमें बताया एक प्रेमी के रूप में प्रेम को जीना, पिता के रूप में प्रेम को स्वीकाराना, और अभिभाभवक के रूप में प्रेम की ताकत को पहचानना

केतन मेहता ने मांझी को दिखाने के साथ २ फिल्म के व्यापार स्वरूप को बनाए रखा और वो जरूरी भी तो है हम भारतीयों की सिनेमा देखने की आदत भी तो नहीं है लेकिन नवाजुद्दीन ने जिस अन्दाज में पहाड को ललकारा

(बहोत बडा है तू बहोत अकड है तोरा में बहोत जोर है अरे भरम है भरम देख कैसे उखाडते हैं तेरी अकड )

यकीनन फिल्म के सर्वश्रेष्ठ दृश्यों में एक है कैमरा भी उसी अन्दाज में पहाड को और खून में सने नवाज को आमने सामने ले आया लेकिन जब सवाल उठा कि क्यूँ एक आदमी एक पूरे पहाड से अकेले लड रहा है तब प्रेम अपने प्रान्जल रूप में भगुनिया (राधिका आप्टे) मांझी की प्रेयसी और फिर पत्नी के रूप अपनी सम्पूर्णता के साथ प्रकट हुआ

इसी सफर में आज भी सुनने को मिलने वाली घटनाएँ कि कैसे कोई खनन मफिया अधिकारी को ट्रेक्टर से कुचल देता है फिल्म में देखने को मिली जब भट्टे में ईटों को तपाते वक्त एक मजदूर के गिर जाने पर भट्टा इसलिए नहीं बुझाया जाता कि एक मजदूर की जान की कीमत से कहीं ज्यादा मँहगी हैं मुखिया की ईंटो की कीमत समाज के बर्बर और असभ्य चेहरे को तार तार करती ये फिल्म और भी कई मोडों से गुजरती हुएी हमसे सवाल करती और हमको शर्मशार करते हुए आगे बढती रहती है
और एक सवाल पर ठहर जाती है कि दशरथ मांधी कहाँ से लाते हो वो प्रेरणा वो बल और संबल जो तुम्हें ताकत देता है लडने की ,इस पहाड की मगरूरता को चूर चूर करने की, जिसने तुम्हारी भगुनिआ की जान ले ली और जो जवाब आता है उसके आगे प्रेम की बेमिशाल इमारत भी भीकी लगने लगती है
(प्रीत में बहोत बल है रे बाबू .......पहले अपनी भगुनिआ से था अब इस पहाड से है)
वाकई इस लाइन को नवाज ने जिस खूबसूरती के साथ कहा है वो बताता है कि क्यूँ वो अभिनेता के रूप में कमाल के कलाकार हैं राधिका आप्टे ने भी अपने अभिनय के साथ नवाज का पूरा पूरा साथ दिया है और दशरथ के पिता के रूप में अशरफ उल हक ने बहोत ही बढिया और प्रभावी अभिनय किया
आखिर प्रीत की जीत तो हो जाती है पर साथ ही मांझी बताना नहीं भूलते कि किसी भी चीज के लिए भगवान के सहारे मत बैठो क्या पता भगवान तुम्हारे सहारे बैठा हो.....
और यूँ बनती है एक फिल्म जो है
        शानदार ,जबरदस्त, जिन्दाबाद

नोट- सन् २००६ में बिहार सरकार ने मांझी के नाम का सुझाव पद्म श्री के लिए दिया पर शायद मिला नहीं बताता चलूँ कि 2007 में दशरथ मांझी की मृत्यु हो गएी बिना उस रास्ते पर सडक को देखे जिसके लिए उन्होंने पहाड काट के रास्ता बना दिया हमारी सरकारों के लिए क्या कहा जाए बस आप सबके लिए एक आँकडा दे रहा हूँ
देश की सबसे लम्बी सुरंग जम्मू से कश्मीर के बीच बनायी जा रही है जिससे ३० कि०मी० की दूरी घटकर १० कि०मी० रह जाएगी ये सडक जुलाई २०१६,तक बन जाएगी इस परियोजना पर खर्च २५०० करोड का है और दूसरी तरफ 22 साल तक पहाड तोड के रास्ता बनाने वाले मांझी के गांव गहलोर तथा बजीरगंज के बीच ३ कि०मी० जिससे ५५ कि०मी० का रास्ता घटकर १५ कि०मी० रह गया ये सडक २०११ में बन सकी उसको मांझी सडक के नाम से पहचान मिली शायद इससे ही श्रद्धाजंलि मिल जाए दशरथ मांझी को

साभार सारी सूचनाएँ विकीपीडिया और गूगल से ली गएी हैं

9 comments:

  1. प्रिय विकास , ( आप मेरे छोटे बेटे से भी छोटे हैं इसलिये यही सम्बोधन ठीक लगा ) मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ है कि आप काफी जिज्ञासु और अध्ययन-प्रेमी हैं . यह मैं सिर्फ इसलिये नही कह रही कि आपने 'विहान' की इतनी रचनाएं एक साथ पढ़ डालीं ( जब भी समय हो पेड़ किसका है भी पढ़ें ) और अपने विचार भी व्यक्त किये हैं . बल्कि फिल्म की समीक्षा भी कहीं न कहीं यही संकेत करती है . मुझे विश्वास है कि अपना अभीष्ट पाना आपके लिये मुश्किल नही .
    रही फिल्म समीक्षा की बात तो हालाँकि मैने फिल्म देखी नही है लेकिन कई समीक्षाएं पढ़ी है और यह मुझे उन सबसे अच्छी लगी क्योंकि इसमें फिल्म से ज्यादा दशरथ माँझी केन्द्र में है . हमारे देश की विडम्बना है कि परिश्रम निष्ठा व ईमानदारी अकिंचन लोगों के नाम होगई है . चोटी पर पहुँचे लोग सिरफ गाल बजाते हैं और स्वार्थ सिद्ध करते हैं . सचमुच यह बहुत बड़ा सवाल है कि एक व्यक्ति बाईस साल तक अकेला पहाड़ से जूझता रहा और प्रशासन कान में रुई ठूँसे बैठा रहा अगर इस कहानी की गहराई में जाते हैं तो आग ही जलती है . केतन मेहता वह आग तो पैदा नही कर सकते लेकिन जो किया है वह भी अभिनन्दनीय है क्योंकि साहित्य व सिनेमा अमिट कर देते हैं किसी भी नाम को . अब यह सवाल बेकार है कि इससे माँझी को क्या मिला तो इसका जबाब यही सवाल है कि जान देकर भगतसिंह को क्या मिला . सुभाष ने क्या पाया ..

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  2. आपका ह्रदय भर आभार सच में मैं दुविधा में हूँ और हमेशा रहता हूँ कि उम्र के इस लम्बे अन्तराल को कैसे आपके साथ और अन्य कई रचनाकारों के साथ भर सकूँ और संवाद स्थापित कर सकूं और न सिर्फ तारीफ कर सकूं आलोचना भी कर सकूँ और प्रतिउत्तर में आलोचना पा सकूँ सच में मुझे ये जानने में ज्यादा आनन्द है कि कमी क्या है मैं अपने विचारों में गलत कहाँ हूँ
    कृपया जरूर बताएँ कि कैसे इस अन्तराल को सम्मान जनक तरीके से भर सकूं कि कहीं कोई मेरी आलोचना को मेरी कम उम्र का फलसफा न मान बैठे

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  3. प्रिय विकास ,आपने ब्लाग सारी रचनाएं एक साथ पढ़ डालीं हैं ! यह जानकर सचमुच किसी भी रचनाकार को हर्ष व विस्मय हो सकता है .दरअसल यही सफलता है रचना की .
    आपने लिखा है कि मैं क्यूँ लिखूँ , यह आपका मेरी रचनाओं के सम्मान में उद्गार है फिर भी ऐसा सोचना ठीक नही क्योंकि सबकी अभिव्यक्ति अलग और विशिष्ट होती है . यकीनन आप जो भी हैं बहुत अच्छे हैं . आपके पास अभिव्यक्ति की सशक्त क्षमता है उसे जरूर सार्थकता के साथ उपयोग में लाते रहिये . मेरी रचनाओं के प्रति जो आपका भाव है उसे धन्यवाद कहकर हल्का न करूँगी . आप लिखते और पढ़ते रहिये . जब भी आपको मेरी राय की जरूरत होगी मैं जरूर दूँगी . हालाँकि मैं भी खुद को इतनी काबिल और बड़ी रचनाकार नही मानती . मैं आज भी सीख ही रही हूँ .
    मेरा एक तीसरा ( मुख्य ) ब्लाग भी है -yeh mera jahaan . समय मिलने पर देखें . उसमें आपको प्रशंसा के साथ आलोचना करने का सामान खूब मिलेगा .लेकिन जैसा कि आपने लिखा कि रात भर पढ़ते रहे , बिल्कुल नही क्योंकि आपका मुख्य कार्य अपनेआपको देखना है .

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  4. सन् २००६ में बिहार सरकार ने मांझी के नाम का सुझाव पद्म श्री के लिए दिया पर शायद मिला नहीं बताता चलूँ कि 2007 में दशरथ मांझी की मृत्यु हो गएी बिना उस रास्ते पर सडक को देखे जिसके लिए उन्होंने पहाड काट के रास्ता बना दिया हमारी सरकारों के लिए क्या कहा जाए। …… सरकार सोती हैं तभी मांझी जैसे माउन्टेन मैन सामने आते है असली हीरो बनकर …… फ़िल्मी टाइप नहीं।..
    बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

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    1. बहोत शुक्रिया कविता जी पाटी तक आने का और आकाश भर आभार हौसलाआफजाई का कुछ आलोचना के बिन्दु जरूर ही रह गए होगें अगली किसी पोस्ट पर आपकी आलोचना का इन्तजार रहेगा

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  5. प्रशंसनीय

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  6. प्रशंसनीय

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    1. राकेश जी कौशिक पाटी तक आने का बहोत शुक्रिया और एक शब्द से भी मुझे अहं ब्रहमास्मि वाला बल देने का शुक्रिया अभी कुछ दिनों के लिए पाटी पर नहीं लिख रहा हूँ पर आगे जरूर लिखूँगा तब तक के लिए साभार

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