गुजरते हुए हर एक साल की तरह ही ये एक साल भी गुजर ही गया बहोत सारी खट्टी मि्ठी यादों के साथ और इस साल के गुजरने में या इन यादों में इतनी एकरसता सी आ गएी है कि नीरसता सी होने लगती है और साथ में वही पुरानी घिसी पिटी शुभकामनाओं के साथ तो मन और ऊचाट हो जाता है व्याट्सअप पर तो आपको कई संदेश दूसरों के नाम से मिल जाएँगें जैसे डाकिया गलती से मिश्रा जी की चिठ्ठी तिवारी जी के घर दे आया हो रोग फिल्म को वो संवाद याद आ रहा है जब इरफान खान डा० को अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या सुनाते हैं
(घर थाना थाना घर वही खून .... मन ऊब सा गया है)
मेरे गाँव की पाठशाला की पुरानी पाटी (स्लेट),जिस पन्ने पर जीवन का पहला अक्षर उकेरा,आज वर्चुयल पाटी के रूप में मेरे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की वो डायरी है जिसपे आस पास बिखरे हुए प्रेम,विरह,वेदना सफलता,असफलता,नफरत,घृणा,यौनिकता के भावों की कहानियाँ ,कहानियों के रूप में या लेख,व्यंग्य और गीतों, गजलों के रूप में दर्ज होते रहेगें! आपसे रिश्ता खास है क्यूँ कि ये सब जीने वाले पात्र हम और आप हैं एक वर्चुयल परिवार की तरह! आपके आने का शुक्रिया और सुझावों और प्रतिकाओं का मुन्तजिर
Thursday 31 December 2015
नया साल दिन वही पुराना
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