Thursday 31 December 2015

नया साल दिन वही पुराना

गुजरते हुए हर एक साल की तरह ही ये एक साल भी गुजर ही गया बहोत सारी खट्टी मि्ठी यादों के साथ और इस साल के गुजरने में या इन यादों में इतनी एकरसता सी आ गएी है कि नीरसता सी होने लगती है और साथ में वही पुरानी घिसी पिटी शुभकामनाओं के साथ तो मन और ऊचाट हो जाता है व्याट्सअप पर तो आपको कई संदेश दूसरों के नाम से मिल जाएँगें जैसे डाकिया गलती से मिश्रा जी की चिठ्ठी तिवारी जी के घर दे आया हो रोग फिल्म को वो संवाद याद आ रहा है जब इरफान खान डा० को अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या सुनाते हैं
(घर थाना थाना घर वही खून .... मन ऊब सा गया है)