Sunday 11 February 2024

बाद मुद्दत के , बड़ी सिद्दत से।
ये हम जो कुछ भी मांग बैठे।।

यकीन था हमको आरजू पर।
वो इन्कार की जिद ठान बैठे।।


सर

तुम कितने ही कांधों पर सर रखोगे
लाख चाहोगे खुद को बेघर ही रखोगे
तुम्हें घर बसाना था घर बस गया है
अपने सपनों के हिस्से को किधर रखोगे

Friday 25 September 2020

दिया

देखा है हमने एक एसा मकान भी
घर रोशनी के अँधेरा मेहमान भी
खुदी में जब्त है जिसके
नव सृजन का सब सामान भी

कुछ आग है तो कुछ पानी भी
संग मिट्टी के हवा की रवानी भी
सुनो गौर से एक एसी वानी भी
जलता दिया कहता है कोई कहानी भी

महलों में रहा अभिमान पाया
झोपडी में दुखों को जान पाया
साथ बच्चों के रहा खुशी पहचान पाया
मन्दिरों में रहा तो सम्मान पाया
पर होता दफ्तरों में अपमान पाया
मरघट पे शाश्वत सच हैरान पाया

टिमटिमाती लौ लडती है
फिर बुझ क्यूँ जाती है
बाती तेल का साथ निभाती है
फिर तन्हा क्यूँ रह जाती है
मिट्टी माँ है माँ जननी है
फिर मर क्यूँ जाती है
हौसला जब तक है

Saturday 6 January 2018

अतीत में हम

मैं अक्सर सोचता हूं, मैं सोचता हूं क्या।
दरो दीवार पर ,तेरा ,नाम ढूंढता हूं क्या।।

मंजिलें जो एक थीं कब कि कहां रह गई
गुजरे रास्तों पर ठहर कर, देखता हूं क्या।

Thursday 31 December 2015

नया साल दिन वही पुराना

गुजरते हुए हर एक साल की तरह ही ये एक साल भी गुजर ही गया बहोत सारी खट्टी मि्ठी यादों के साथ और इस साल के गुजरने में या इन यादों में इतनी एकरसता सी आ गएी है कि नीरसता सी होने लगती है और साथ में वही पुरानी घिसी पिटी शुभकामनाओं के साथ तो मन और ऊचाट हो जाता है व्याट्सअप पर तो आपको कई संदेश दूसरों के नाम से मिल जाएँगें जैसे डाकिया गलती से मिश्रा जी की चिठ्ठी तिवारी जी के घर दे आया हो रोग फिल्म को वो संवाद याद आ रहा है जब इरफान खान डा० को अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या सुनाते हैं
(घर थाना थाना घर वही खून .... मन ऊब सा गया है)

Thursday 8 October 2015

मेरी आवाज सुनो

ये तस्वीर लखनऊ के विकास नगर सडक की है जिसमें बोलने में भी लगभग असमर्थ एक सख्श ने अपने बाक्स पर लिख रखा है मेरी आवाज सुनो मैंने जब ये दृश्य देखा और जो भी मुझे सुनाएी दिया पाटी पर लिख रहा हूँ
 आप शायद देख पा रहे होंगे कि ट्रायसायकिल के एक तरफ वजन करने वाली मशीन रखी है बगल में एक बाक्स रखा है जिसमें ऊपर रूपये डालने की जगह बनी हुएी है और हैण्डल पर एक टार्च बँधी है जो सीधे मशीन की सुईयों पर फोकस है ताकि वजन आसानी से पढा जा सके इसी बाक्स पर लिखा है ऊपर ही गुब्बारे बँधे हैं बगल के बोर्ड पर रेटलिस्ट है वजन करने का २ रू तथा गुब्बारे का ५ रू इस तरह एक विशेष रूप से सक्षम (विकलांग के लिए हिन्दी में एक नया शब्द है विक्षेष रूप से सक्षम NDTV ने ये एक नया और सम्मानजनक नाम गढा है)
व्यक्ति अपनी जीविका उपार्जन कर रहा है और हैरान करने की बात ये है कि कुछ मानसिक रूप से भी लाचारी है जब मैंने बात करी तब ये बात समझ आएी बस एक वाक्य बार बार बोला गया मेरे हर सवाल पर I can't speak Hindi.मैंने जब अंग्रजी में कुछ पूछा तो भी सवाल का जवाब वही रहा मैंने ये तस्वीर उनसे पूछ के ही ली पर वो मुझे कह नहीं पाए कि तस्वीर लूँ या नहीं तो बस ये कह कर कि एक तस्वीर निकाल रहा हूँ आपकी, ये तस्वीर ले ली
इस एक दृश्य ने मुझे सफलता के गढे हुए तमाम तथाकथित मानकों पर फिर से सोचने को मजबूर कर दिया, हो सकता हो ये सख्श सफलता के उन मापदणडों को पूरा नहीं करता हो जो हमने बना रखे हैं मगर मेरी नजर में इस सख्श की जीवटता उन तमाम मापदण्डों से ऊँची है जिस पर मैं और हम सब कभी न कभी अपने आपको तौलने लग जाते हैं कभी पद के नाम पर कभी पैसे के नाम पर और फिर कभी इन सब के आगे पहचान पाने की लालशा से, अपने २ तरीके से आंकलन करते हैं कि हमारे पास क्या है इस सवाल में सन्दर्भ( हमारे पास क्या नहीं है )का ही है
मैं हमेशा सोचता रहा हूँ कि भविष्य निर्माण के क्रम में क्या जरूरी है व्यक्तित्व का विकास या आर्थिक विकास बेशक दोनों जरूरी हैं लेकिन आनुपातिक रूप में चरित्र निर्माण ही प्रथम होना चाहिए आपका चरित्र आपका भविष्य निर्मित कर देगा मुझे नहीं पता चरित्र निर्माण की पाठशाला कहाँ से शुरू होती है लेकिन इतना जरूर पता है ये कहीं न कहीं हमारे अन्दर ही है तस्वीर में मौजूद इस व्यक्ति ने अपने जीवन का केन्द्र बिन्दु उसकी अपनी अक्षमताओं को नहीं बनाया बल्कि उन मौंकों में खुद को तलाशा जो उसके पास मौजूद थे मैं हमेशा मानता रहा हूँ कि अगर सफल होना ही सफलता का मानक है तो एसे मानकों को बदल देना चाहिए किसी की सफलता की कहानी जरूर पढिए लेकिन किसी की असफलता को भी पढिए कुछ अपने उन दोस्तों को भी गले लगाइए जो क्लास के हीरो नहीं हैं बस जीवन में कुछ करते रहिए अपने आज को जीते रहिए क्यूँकि ये ही मौजूद है सच है कि हमारे आने वाले कल की बुनियाद हमारे आज पर है लेकिन देखना कि हम अपने आज और आने वाले कल के बीच अपने गुजरे हुए कल की महत्ता को न भुला दें हमारा गुजरा हुआ कल हमारे अतीत का वो आइना है जो हमें दिखाता है कि हम कल क्या थे और आज क्या हो गए हैं 

Sunday 13 September 2015

एक गजल सुनाता हूँ

एक शहर की वो जिन्दा कहानी आज भी है
मोहब्बत में धडकते दिलों में रवानी आज भी है

दिन के उजाले झूठी मुस्कानों को ढो रहे हैं
रात जानती है उनकी आँखों में पानी आज भी है

वादों ख्याबों खयालों की चिता तो कब की जल चुकी
कुछ लफ्जों में बची उसकी निशानी अाज भी है

उनसे मिलने का तसव्वुर फिर जाग बैठा जबकि मालूम है
दिल तोड जाने की उनकी आदत पुरानी आज भी है