Saturday 6 January 2018

अतीत में हम

मैं अक्सर सोचता हूं, मैं सोचता हूं क्या।
दरो दीवार पर ,तेरा ,नाम ढूंढता हूं क्या।।

मंजिलें जो एक थीं कब कि कहां रह गई
गुजरे रास्तों पर ठहर कर, देखता हूं क्या।

3 comments:

  1. मैं ठीक हूं विकास. बहुत दिनों से न आपने यहाँ कुछ लिखा न ही मेरे ब्लाग पर आए. सब ठीक है न?

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