Friday 25 September 2020

दिया

देखा है हमने एक एसा मकान भी
घर रोशनी के अँधेरा मेहमान भी
खुदी में जब्त है जिसके
नव सृजन का सब सामान भी

कुछ आग है तो कुछ पानी भी
संग मिट्टी के हवा की रवानी भी
सुनो गौर से एक एसी वानी भी
जलता दिया कहता है कोई कहानी भी

महलों में रहा अभिमान पाया
झोपडी में दुखों को जान पाया
साथ बच्चों के रहा खुशी पहचान पाया
मन्दिरों में रहा तो सम्मान पाया
पर होता दफ्तरों में अपमान पाया
मरघट पे शाश्वत सच हैरान पाया

टिमटिमाती लौ लडती है
फिर बुझ क्यूँ जाती है
बाती तेल का साथ निभाती है
फिर तन्हा क्यूँ रह जाती है
मिट्टी माँ है माँ जननी है
फिर मर क्यूँ जाती है
हौसला जब तक है

1 comment:

  1. सुन्दर मनोभाव और उन्ही के अनुरूप अभिव्यक्ति .
    विकास आज अचानक एक कहानी देखते हुए आपकी टिप्पणी पर दृष्टि गई तो ध्यान आया कि बहुत दिनो से कुछ पता नहीं चला ..जिस राह पर चल रहे थे मंजल तक पहुँचे कि अभी सफर जारी है .

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