Sunday 11 February 2024

सर

तुम कितने ही कांधों पर सर रखोगे
लाख चाहोगे खुद को बेघर ही रखोगे
तुम्हें घर बसाना था घर बस गया है
अपने सपनों के हिस्से को किधर रखोगे

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